एक अनूठा उत्सव आया
बरस-बरस गयी कृपा देव की श्रावण मास पूर्ण हुआ जब, लेने लगा होड़ बदली से पूर्ण चन्द्र खिल आया नभ पर ! भारत की इस पुण्य भूमि पर एक अनूठा उत्सव आया, प्रेम ही जिनका आदि-अंत है संबंधों को निकटतम लाया ! पूर्ण वर्ष का भाव छिपा जो भीतर गहन हुआ अब प्रकटा, बहन बाँधती रक्षा बंधन भाई का भी दिल भर आया ! आशीषें हैं और दुआएँ तिलक लगाती दिए मिष्ठान, अनगिन खुशियाँ बहना पाए बांधें राखी सँग मुस्कान ! मन ही मन वारी है जाती बहन का दिल हुआ गर्वीला, कितनीं यादें उर में आतीं लख भाई का ढंग हठीला ! जो कुछ पाया है भाई से धीरे से माथ से लगाती, निज अंतर हृदय की ऊष्मा बिन बोले चुपचाप लुटाती !
बहुत आत्मीय रंग। रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं!!!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार विश्वमोहन जी!
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