वीर शहीदों के नाम
त्याग दिया हर सुख जीवन का
मृत्यू को भी गले लगाया,
कैसे धुर दीवाने थे वे
शुभ देश प्रेम को अपनाया !
भारत माता है गुलाम क्यों
यह दंश उन्हें अति चुभता था,
ब्रिटिशों की सह रही दासता
दर्द बहुत ही यह खलता था !
उन बलिदानों की गाथा अब
हर भारतवासी जन जाने,
वे जो सच्चे सेनानी थे
उनकी नव कीमत पहचाने !
अनगिन बाधाएँ सहकर भी
भारत हित वे डटे रहे थे ,
नत हो जाता है हर मस्तक
उनकी खातिर जो झुके नहीं !
वह शौर्य, तेज, पराक्रमी दिल
वह अमर भाव बलिदानी का,
देश आज आजाद हुआ है
है कृतज्ञ उनकी वाणी का !
भारतमाँ पर त्रस्त आज भी
भूख, गरीबी,व अज्ञान से,
अस्वच्छता, बेकारी और
पाखंड, असत्य, अभिमान से !
उन वीरों की हर क़ुरबानी
व्यर्थ नहीं अब जाने पाए,
वसुंधरा का यह महादेश
पुनः विस्मृत निज गौरव पाए !
काश । इस पर सब मन से विचार करें । प्रेरक रचना ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार संगीता जी, यकीनन आज देश का मिज़ाज बदल रहा है
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी!
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (28-8-22} को साथ नहीं है कुछ भी जाना" (चर्चा अंक 4535) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार कामिनी जी!
हटाएंबहुत सुंदर!!!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंशहीदों को नमन
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंदेश को समर्पित सार्थक सृजन। शुभकामनाएँ।
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