मुक्ति का गीत
मुक्त हूँ ! इस पल ! यहाँ पर !
मुक्त हूँ हर बात से उस
हर घड़ी जो टोकती थी,
याद कोई जो बसी थी
भय बताकर टोकती थी !
मुक्त हूँ नित भीत से भी
तर्क के उन सीखचों से,
तोड़ दी दीवार हर वह
बोझ जिनका था सताता !
मुक्त हूँ ! इस पल ! यहाँ पर !
नील अम्बर सामने था
किंतु दिल यह उड़ न पाता,
बांध ली थीं साँकलें कुछ
क़ैद मन को कर लिया था !
मुक्त हूँ हर बात से उस
हृदय को खिलने न देती
सहज अपनापन जगाकर
जो कभी मिलने न देती
मुक्त हूँ ! इस पल ! यहाँ पर !
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 24 अगस्त 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम
बहुत बहुत आभार पम्मी जी !
हटाएंमुक्ति का गीत..
जवाब देंहटाएंनील अम्बर सामने था
किंतु दिल यह उड़ न पाता,
बांध ली थीं साँकलें कुछ
क़ैद मन को कर लिया था !
. वाह दीदी गहनतम भाव ।
स्वागत व आभार जिज्ञासा जी!
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ज्योति जी!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अभिलाषा जी !
हटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी!
हटाएंबहुत सुंदर भाव, मुक्ति का भाव बहुत सुख होता है
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अनीता जी!
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी !
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