गुरुवार, अगस्त 18

प्रेम की भाषा बोले कृष्ण

प्रेम की भाषा बोले कृष्ण 

नन्द-यशोदा अपलक निरखें 
बाल कन्हैया का शुभ मुखड़ा, 
धन्य हुई ब्रज की धरती पा 
नीलमणि सम चाँद का टुकड़ा ! 

मोर मुकुट पीतांबर धारे 
घुंघराली लट ललित अलकें, 
ओज टपकता मुखमंडल से 
नयनों से ज्यों मधुघट छलकें ! 

प्रतिदिन ग्वालों सँग गोचारण
यमुनातट वंशीवट घूमें, 
वंशी धुन सुन थिरकें ग्वाले 
पशु, पक्षी, पादप मिल झूमें !

कृष्ण, कन्हैया, माधव, केशव
मोहन, गिरधारी, वनमाली, 
अनगिन नाम कई लीलाएं 
वृन्दावन में ही रच डालीं !

प्रेम की भाषा बोले कृष्ण 
प्रेम सुधा में भीगी राधा, 
प्रेमिल बंधन स्नेहिल धागा 
गोकुल में सभी से  बांधा !

8 टिप्‍पणियां:

  1. वाह!बहुत सुंदर।
    श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  2. प्रेम की भाषा बोले कृष्ण
    प्रेम सुधा में भीगी राधा,
    बेहतरीन

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  3. बहुत प्यारी, भक्ति भाव से पूरित सुंदर रचना।

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  4. नन्द-यशोदा अपलक निरखें
    बाल कन्हैया का शुभ मुखड़ा,
    धन्य हुई ब्रज की धरती पा
    नीलमणि सम चाँद का टुकड़ा !

    भक्ति भाव में सराबोर बहुत ही सुन्दर सृजन अनीता जी 🙏

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  5. अनीता जी, यशोदा जी, ज्योति जी, संगीता जी, कुसुम जी, व कामिनी जी आप सभी का स्वागत व हृदय से आभार !

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