भारत
‘देने’ को कुछ न रहा हो शेष
जब आदमी के पास
तब कितना निरीह होता है वह
देना ही उसे आदमी बनाये रखता है
मांगना मरण समान है
खो जाता जिसमें हर सम्मान है !
देना जारी रहे पर किसी को मांगना न पड़े
ऐसी विधि सिखा रहा आज हिंदुस्तान है !
पिता जैसे देता है पुत्र को
माँ जैसे बांटती है अपनी सन्तानों को
उसी प्रेम को
भारत के जन-जन में प्रकट होना है
ताकि ‘वसुधैव कुटुम्बकम’
मानने वाली इस संस्कृति की
बची रहे आन, आँच न आए उसे !
जहां अनुशासन और संयम
केवल शब्द नहीं हैं शब्दकोश के
यहां समर्पण और भक्ति
कोरी धारणाएं नहीं हैं !
यहां परमात्मा को सिद्ध नहीं करना पड़ता
वह विराजमान है घर-घर में
कुलदेवी, ग्राम देवी और भारत माता के रूप में
वह देश अब आगे बढ़ रहा है !
और दिखा रहा है सत्मार्ग
विश्व को अपने शाश्वत ज्ञान से !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 10 नवंबर 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
बहुत बहुत आभार रवींद्र जी!
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 10 नवंबर 2022 को 'फटते जब ज्वालामुखी, आते तब भूचाल' (चर्चा अंक 4608) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
बहुत बहुत आभार रवींद्र जी!
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर
स्वागत व आभार यशोदा जी!
हटाएं'मांगना मरण समान है' तथा 'यहां परमात्मा को सिद्ध नहीं करना पड़ता'... सुन्दर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार "हृदयेश" जी!
हटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अभिलाषा जी !
हटाएंआदरणीया मैम , सादर प्रणाम । भारत की महिमा का बखान करती हुई बहुत ही सुंदर , देश प्रेम से ओत-प्रोत रचना । सच अपनी सांस्कृतिक संपन्नता संजओय हुए हमारा आधुनिक भारत बहुत सुंदर है । आशा है यह ऐसे ही पहले-फूले और खूब आगे बढ़े । अधिकतर हम अपने देश की व्यवस्था से कहींन होकर उसकी बुराई करते हैं पर इसकी महानता और सुंदरता भूल जाते हैं। साकरात्मक पहलुओं की ओर ध्यान आकर्षित करती हुई सुंदर रचना । बहुत दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ, मेरी रचनाओं को आपका आशीष सतत मिलता है परंतु मैं सद्य नहीं आ पाती पर अब प्रयास करूँगी । पुनः ब्लॉग पर वापसी की है । इतनी आनंदकर रचना के लिए आभार एवं पुनः प्रणाम ।
जवाब देंहटाएंप्रिय अनंता जी, इतनी विस्तृत और सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार, निरंतरता बनाए रखिए
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