कान्हा बंसी किसे सुनाए
वरदानों से झोली भर दी
पर हमने क़ीमत कब जानी,
कितनी बार मिला वह प्रियतम
किंतु कहाँ सूरत पहचानी !
आस-पास ही डोल रहा है
जैसे मंद पवन का झोंका,
कैसे कोई परस जगाए
बंद अगर है हृदय झरोखा !
रुनझुन का संगीत बज रहा
पंचम सुर में कोकिल गाए,
कानों में है शोर जहाँ का
कान्हा बंसी किसे सुनाए !
एक नज़र करुणा से भर के
दे देती प्रकृति पुण्य प्रतीति,
राहों के पाहन चुन-चुन कर
जीवन में मधुरिम रव भरती !
अमर अनंत धैर्यशाली वह
हुआ सवेरा जब जागे तब,
आनंद लोक निमंत्रण देता
लगन लगे मीरा वाली जब !
वरदानों से झोली भर दी
जवाब देंहटाएंपर हमने क़ीमत कब जानी,
कितनी बार मिला वह प्रियतम
किंतु कहाँ सूरत पहचानी !
.. बहुत सुंदर रचना ।
स्वागत व आभार जिज्ञासा जी!
हटाएंसूरत कान्हा के मायाजाल में कहाँ जानी जाती है ... मीरा जैसी लगन लगाना मीरा के ही बस में है ...
जवाब देंहटाएंसही है, स्वागत व आभार !
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