सच है न !
सच को झुठलाते हैं हम
लाख छुपाते भी हैं
भूल जाना चाहते हैं उसे
सच से मूँद लेते हैं आँखें
डरते भी हैं
दरकिनार कर उसे
झूठ का एक ताजमहल खड़ा कर लेते हैं
पर वह टिकता नहीं
टिक सकता नहीं
सच अनावृत होता है
और सब बिखर जाता है
अदेखा कर के भी कोई
सच से बच नहीं सकता
भीतर-भीतर कुरेदता रहता है
सच कितना भी कड़वा हो
उसे घूँट-घूँट पीना ही होता है
उसकी नींव पर खड़ी होती है
प्रेम की इमारत
सच की स्याही से लिखी जाती है
कभी न मिटने वाली इबारत !
बहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी!
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार हिमकर जी!
हटाएंबहुत बहुत आभार यशोदा जी!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, पावन पर्व की अशेष शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंप्रेम की इमारत
जवाब देंहटाएंसच की स्याही से लिखी जाती है
कभी न मिटने वाली इबारत !
वाह!!!
स्वागत व आभार सुधा जी!
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