मंगलवार, मार्च 7

पलकों में अनुराग भर लिया


पलकों में अनुराग भर लिया 


आम बौराया, खिल मंजरी 

 झूल रही मद में गर्वीली,

हवा फागुनी मस्त हुई है 

बिखरी मदिर सुवास नशीली !


मोहक, मदमाता सा मौसम

 खिले पलाश, सेमल की डाल

धूम मचाती, रंग उड़ाती 

 आयी होली उड़ता गुलाल !


बही बयार बड़ी बातूनी

 बासंती बाग  में  रसीली,

बजे ढोल, मंजीरे खड़के,

 नाच उठी सरसों शर्मीली !


उपवन-उपवन पुष्पों की छवि 

 ज्यों बारात सजी अलबेली  

गुन-गुन नर्तन करे भ्रामरी 

 उड़े  तितलियों सँग  रंगीली  !


ऊपरवाला खेल रहा है 

ऐसे सँग कुदरत के होली

लाल गुलाब, गुलाबी कंचन  , 

निकल पड़ी महुआ की टोली  !


छँट गए सारे घन सुनी जब  

कोयलिया की वन-वन बोली

मिटा द्वैत सब एक हुए हैं 

हरेक मुखड़े  सजी रंगोली !


डगर-डगर हर गाँव खेत में 

निकली है मस्तों की टोली,

पलकों में अनुराग भर लिया 

बोलों में ज्यों मिसरी घोली !  


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