एक पुकार बुलाती है जो
कोई कथा अनकही न रहे
व्यथा कोई अनसुनी न रहे ,
जिसने कहना-सुनना चाहा
वाणी उसकी मुखर हो रहे !
एक प्रश्न जो सोया भीतर
एक जश्न भी खोया भीतर,
जिसने उसे जगाना चाहा
निद्रा उसकी स्वयं सो रहे !
एक चेतना व्याकुल करती
एक वेदना आकुल करती,
जिसने उससे बचना चाहा
पीड़ा उसकी सखी हो रहे !
कोई प्यास अनबुझी न रहे
आस कोई अनपली न रहे,
जिसने उसे पोषणा चाहा
सहज अस्मिता कहीं खो रहे !
एक पुकार बुलाती है जो
इक झंकार लुभाती है जो,
जिसने उसको सुनना चाहा
घुलमिल उससे एक हो रहे !
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-3-23} को "शब्द बहुत अनमोल" (चर्चा-अंक 4646) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
------------
कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार कामिनी जी !
हटाएंसुन्दर पोस्ट
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी!
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ज्योति जी!
हटाएं