बुधवार, जुलाई 19

आत्मा का फूल


आत्मा का फूल 

जहां प्रमाद है वहाँ अहंकार है 

जहां अहंकार है वहाँ प्यार नहीं 

जहां प्यार नहीं वहाँ राग-द्वेष है 

अर्थात वे दो असुर 

जिन्होंने देवों का धरा वेश है 

राग प्रिय से बाँधता है 

द्वेष अप्रिय से बचना चाहता है 

पर हर बंधन दुःखदायी है 

और बचने की कामना ही 

और जोरों से बाँधती आयी है

जिसे पकड़ा है 

वह छूट जाता है 

जिसे छोड़ना चाहा 

वह बना रहता है मन में 

इन असुरों का अंत किए बिना 

प्रेम का राज्य नहीं मिलता 

और प्रेम के बिना 

आत्मा का फूल नहीं खिलता !  



5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 20 जुलाई 2023 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. भौतिक सुखों के बदले आत्मा तो शैतान को बेच दी.
    अब आत्मा के फूल खिलेंगे भी तो शैतान के आँगन में खिलेंगे.

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