यदि मुक्त हुआ चाहो
जो दर्द छुपा भीतर
खुद तुमने उसे गढ़ा,
नाजों से पाला है
खुद उसको किया बड़ा !
तुमने ही माँगा है
ऊर्जा पुकारी है,
यदि मुक्त हुआ चाहो
अभिलाष तुम्हारी है !
हम ही कर्ता-धर्ता
हमने ही भाग्य रचा,
अजाने में ही सही
दुःख भरी लिखी ऋचा !
अब हम पर है निर्भर
यह दांव कहाँ खेलें,
जीवन शतरंज बिछा
कैसे यह चाल चलें !
सुख की यदि चाह तुम्हें
कुछ बोली लग जाये,
क्या कीमत दे सकते
यह सर भी कट जाये !
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 02 जूलाई 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार यशोदा जी!
हटाएंअच्छी रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंबहुत खूब लिखााअनीता जी, अजाने में ही सही
जवाब देंहटाएंदुःख भरी लिखी ऋचा !...वाह
स्वागत व आभार अलकनंदा जी !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंजीवन की शतरंजी चाल में विजय रूपी सुख पाने की चाहत में कभी-कभी सर ही कलम हो जाता है
जवाब देंहटाएंआपका कहना सही है, साथ ही यदि सदा के लिए दुख से मुक्ति चाहिये तो सर कटाने के लिए तैयार रहना होगा
जवाब देंहटाएंसब कुछ स्वयं पर ही निर्भर है ... सुख, दुःख या कुछ और की चाह ...
जवाब देंहटाएंसार्थक लेखन ...
स्वागत व आभार!
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