गुरु ज्ञान से
जग जाये वह तर ही जाये
रग-रग में शुभ ज्योति जलाये,
धार प्रीत की सदा बरसती
बस उस ओर नज़र ले जाये !
काया स्वस्थ हृदय आनंदित
केतन भरे रहें भंडारे,
हर प्राणी हित स्वस्ति प्रार्थना
निज श्रम से क़िस्मत संवारें
अधरों पर हो नाम उसी का
नित्य नियम उर बाती बालें,
कान्हा वंशी डमरू शंकर
सर्वजनों हित प्रेम सँभाले
भेद मिटे अपनों ग़ैरों का
काम सभी के सब आ जायें,
जीवन यह आना-जाना है
जो पाया है यहीं लुटायें !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 5 जुलाई 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
बहुत बहुत आभार पम्मी जी!
हटाएंउम्दा रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी!
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ज्योति जी!
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