सोमवार, जुलाई 17

एक बांसुरी की सरगम दिल

एक बांसुरी की सरगम दिल 


बस कशमकश है ज़िंदगी, या 

प्रीत रागिनी मधुर बज रही, 

क्यों इसको संघर्ष बनाते 

निशदिन रस की धार बह रही !


सुरमई साँझ, केसरिया दिन 

लपटों में घिर-घिर जाते क्यों, 

एक बांसुरी की सरगम दिल 

व्यर्थ शोर में बदल रहा ज्यों !


प्रेम गुज़ारिश, एक बंदगी 

फ़रमानों की भेंट चढ़ गया, 

जहां सरसता उग सकती थी 

अरमानों का रक्त बह गया !


चंद खनकते सिक्कों आगे 

दिल का दर्द न पड़ा दिखायी, 

अहंकार की भाषा जीती 

सदा प्रीत की ही रुसवाई !


लेकिन आख़िर कब तक बोलो 

जीवन दुर्दम बोझ सहेगा, 

तोड़ बंधनों की सीमाएँ 

नव अंकुर सा उमग बहेगा !


8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" मंगलवार 18 जुलाई 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !  

    जवाब देंहटाएं
  2. लेकिन आख़िर कब तक बोलो

    जीवन दुर्दम बोझ सहेगा,

    तोड़ बंधनों की सीमाएँ

    नव अंकुर सा उमग बहेगा !
    वाह! बहुत सुंदर।

    जवाब देंहटाएं
  3. खुद के प्रश्नों का उत्तर खुद से ही मांगती मार्मिक रचना प्रिय अनीता जी। इन प्रश्नों के उत्तर मिल जाते तो जीवन कितना सरल होता!!🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपने सही कहा है, पर पूछते रहने होंगे कुछ सवाल, जब तक समाधान न हो, आभार रेणु जी !

      हटाएं