शुक्रवार, जुलाई 21

अक्सर


अक्सर 


हम जिससे बचना चाहते हैं 

बच ही जाते हैं

जैसे कि कर्त्तव्य पथ की दुश्वारियों से 

अपने हिस्से के योगदान से 

कुछ भी न करके 

हम पाना चाहते हैं सब कुछ 

जगत जलता रहे 

हम सुरक्षित हैं 

जब तक आँच की तपन 

हमें झुलसाने नहीं लगती 

हम हिलते ही नहीं 

अकर्मण्यता की ऐसी ज़ंजीरों ने जकड़ लिया है 

कभी भय, कभी असमर्थता की आड़ में 

हम छुप जाते हैं 

छुपना पलायन है 

पर कृष्ण अर्जुन को भागने नहीं देते 

हर आत्मा को लड़ना ही पड़ता है

एक युद्ध 

प्रमाद के विरुद्ध 

यदि उसे पाना है अनंत 

ऊपर उठना होगा अपनी अक्षमताओं से 

प्रेम को ढाल नहीं कवच बनाकर 

उतरना होगा 

कर्त्तव्य पथ पर !  


10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (23-07-2023) को    "आशाओं के द्वार"  (चर्चा अंक-4673)   पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सुन्दर सीख देती आपकी रचना ... पर कृष्ण भागने कहाँ देंगे ... उनपर विशवास हो बस ...

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    1. सही है दिगम्बर जी, कृष्ण पर विश्वास हो तो वह पथ पर बनाये रखते हैं

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  3. अकर्मण्यता की ऐसी ज़ंजीरों ने जकड़ लिया है
    कभी भय, कभी असमर्थता की आड़ में
    हम छुप जाते हैं
    सच्चाई को आइना दिखाती उत्तम रचना।

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