खुले न द्वार हृदय का जब तक
जीवन चिर बसंत सा मिलता
यदि कोई बाधा मत डाले,
सुरभित ब्रह्मकमल सा खिलता
आत्ममुग्धता ग़र तज डाले !
दिग दिगंत में जो फैला है
छोटा सा बन हुआ संकुचित,
खुले न द्वार हृदय का जब तक
कैसे मिलन घटेगा समुचित !
रूप धरा वामन, विराट है
छा जाता भू-स्वर्ग हर कहीं,
मिट जाये जो पा लेता है
नहीं जानता उर राज यही !
जो पहले था, सदा रहेगा
उसका स्वाद जरा लग जाये,
दिल दीवाना रहे ठगा सा
बार-बार मिट रहे रिझाये !
जो पहले था, सदा रहेगा
जवाब देंहटाएंउसका स्वाद जरा लग जाये,
दिल दीवाना रहे ठगा सा
बार-बार मिट रहे रिझाये !
बहुत सुंदर।
स्वागत व आभार जिज्ञासा जी !
हटाएंकबीर ने भी कहा था - घूँघट के पट खोल रे ,तोहे पिया मिलेंगे!
जवाब देंहटाएंकबीर के साथ कितने ही संतों ने गाया है, जिसने पाया भीतर ही पाया है !स्वागत व आभार प्रतिभा जी !
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