मन से कुछ बातें
मन ! निज गहराई में पा लो,
एक विशुद्ध हँसी का कोना
बरबस नजर प्यार की डालो
बहुत हुआ अब रोना-धोना !
किस अभाव का रोना रोते
उपज पूर्ण से नित्य पूर्ण हो,
सदा संजोते किस कमी को
खुद अनंत शक्ति का पुंज हो !
स्वयं ‘ध्यान’ तुम ‘ध्यान’ चाहते
लोगों का कुछ ‘ध्यान’ बँटाकर
निज ताक़त को भुला दिया है
इधर-उधर से माँग-माँग कर !
आख़िर कब तक झुठलाओगे
अपनी महिमा के पर्वत को,
नज़र उठाकर ऊपर देखो
उत्तंग शिखर छूता नभ को !
रोज-रोज का वही पुराना
छोड़ो भी अब राग बजाना,
कृष्ण बने सारथी तुम्हारे
कैसे कोई चले बहाना !
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 18 दिसंबर को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!