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शनिवार, फ़रवरी 19

चलना है हमको नव पथ पर

 चलना है हमको नव पथ पर 

देश, प्रदेश, शहर, गाँव सभी 

बुला रहे हैं हसरत भर कर,  

हाथ मिला लें, कदम बढ़ा लें 

चलना है हमको नव पथ पर  !


माना लंबी राह सामने 

निकल पड़ें हम साथ डगर पर, 

इक दूजे का हाथ थामते 

सारा जग लगता आँगन घर !


बनें चेतना की चिंगारी 

जगमग दीप जलाएँ मिलकर, 

ज्योति उस करुणामयी माँ की

चलती फिरती आग बनें फिर !

 

भस्म करे सारी भय बाधा 

पथ प्रशस्त कर दे जीवन का, 

बाहर भीतर भेद मिटा दे 

 पावन वही प्रकाश बनें हम !


चाहे दुःख  की ज्वालाएँ हों 

 शीतल सावन हो अंतर में, 

जो न कभी कम हो बहने से 

नयनों का उल्लास बनें हम !


मंगलवार, अक्टूबर 26

जाना है उस दूर डगर पर

जाना है उस दूर डगर पर

दिल में किसी शिखर को धरना
सरक-सरक कर बहुत जी लिए,
पंख लगें उर की सुगंध को
गरल बंध के बहुत पी लिए !

जाना है उस दूर डगर पर
जहाँ खिले हैं कमल हजारों,
पार खड़ा कोई लखता है
एक बार मन उसे पुकारो !

जहाँ गीत हैं वहीं छिपा वह
शब्द, नि:शब्द युग्म के भीतर,
भीतर रस सरिता न बहती
यदि छंद बद्ध न होता अंतर !

सागर सा वह मीन बनें हम
संग धार के बहते जाएँ,
झरने फूटें सुर के जिस पल
 झरे वही, लय में ले जाये !

रिक्त रहा है जो फूलों से
विटप नहीं वह बन कर रहना,
गंध सुलगती जो अंतर में
वह भी चाहे अविरत बहना !

निशदिन जो बंधन में व्याकुल
मुक्त उड़े वह नील गगन में,
प्रीत झरे जैसे झरते हैं
हरसिंगार प्रभात वृक्ष से  !

रविवार, मई 3

उसका होना

उसका होना


कोई रेशमी सा ख्याल या 
इंद्रधनुष अटका अम्बर में, 
मादक मीठी तान गूँजती 
कोमल कमल खिला सर्वर में !

कोई ज्यों आवाज दे रहा 
हरियाली सी बिछी डगर पर,
मखमली पगत्राण धरे हों, 
या फूलों के दल हों पथ पर ! 

जैसे कोई लड़ी गीत की
या कोई अनकही कहानी,
रस्ता दिखलाती जाती हो
झरनों में जो बसी रवानी !

हौले हौले से छूती हो, 
कोई अनजानी फुहार या, 
धीमे-धीमे से बहती हो, 
पूरब की मीठी बयार या !

मेघों में जा छुपा सूर्य क्या, 
कोई तृप्ति शाल ओढ़ाकर,
तकता हो बनकर आशीषें, 
जीवन का सुअर्थ महकाकर !

कोई अपने हाथों से आ, 
सहला जाता उर का पाखी, 
पंखों में उड़ान भर जाता, 
देकर खबर किसी मंजिल की !

शुक्रवार, फ़रवरी 9

अनुरागी मन



अनुरागी मन

कैसे कहूँ उस डगर की बात
चलना छोड़ दिया जिस पर
अब याद नहीं
कितने कंटक थे और कब फूल खिले थे
 पंछी गीत गाते थे
या दानव भेस बदल आते थे
अब तो उड़ता है अनुरागी मन
भरोसे के पंखों पर
अब नहीं थकते पाँव
' न ही ढूँढनी पड़ती है छाँव
नहीं होती फिक्रें दुनिया की
 उससे नजर मिल गयी है
घर बैठे मिलता है हाल
सारी दूरी सिमट गयी है !

गुरुवार, अगस्त 26

एक मंजिल एक रस्ता

एक मंजिल एक रस्ता 

तुम्हीं से  मधुमास मेरा

तुम्हीं से  संसार है

तुम न हो तो व्यर्थ सारा, 

यह मधुर  श्रृंगार है !


मन अभी खिलने न पाया 

जब नया था यह सफर,

जिस घड़ी यह हाथ  थामा  

चल पड़े हम इस डगर !


सदा तब से इस हृदय को 

प्रेम का आधार है,

तुम न हो तो व्यर्थ सारा, 

यह मधुर  श्रृंगार है !


जिंदगी में ज्वार-भाटे, 

सरिता सुख-दुःख भरी,

धूप-छांव से हैं रस्ते, 

सूखतीं डालें हरी !


किन्तु रहता एक सा ही

बस तुम्हारा प्यार है,

तुम न हो तो व्यर्थ सारा

यह मधुर  श्रृंगार है !


एक मंजिल एक रस्ता 

एक ही अपना चल,

चाँदनी ओढ़ी बदन पर  

संग सूरज की तपन !


पुलकित  हो अधर कंपते, 

नयन में मनुहार है,

तुम न हो तो व्यर्थ सारा, 

यह मधुर  श्रृंगार है !



२६ अगस्त २०१०