जो शून्य बना छाया जग में
जग जैसा है बस वैसा है
निज मन को क्यों हम मलिन करें,
जो पल-पल रूप बदलता हो
उसे माया समझ नमन करें !
मन सौंप दिया जब प्रियतम को
उन चरणों में ही झुका रहे,
फ़ुरसत है किसके पास यहाँ
निज महिमा का ही हाथ गहें !
जो शून्य बना छाया जग में
कण-कण में जिसकी आभा है,
वह राम बना है कृष्ण वही
उसका दामन ही थामा है !
जो जाग गया मन के भीतर
वह सिक्त सदा सुख सरिता में,
जग अपनी राह चला जाता
वह ठहर गया इस ही पल में !
जो जाग गया मन के भीतर
जवाब देंहटाएंवह सिक्त सदा सुख सरिता में,
जग अपनी राह चला जाता
वह ठहर गया इस ही पल में !
बहुत सुंदर दर्शन!!!!
स्वागत व आभार विश्वमोहन जी!
हटाएंसुंदर एवं सार्थक
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अनुपमा जी!
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (06-04-2022) को चर्चा मंच "अट्टहास करता बाजार" (चर्चा अंक-4392) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' --
बहुत बहुत आभार शास्त्री जी !
हटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंजो जाग गया मन के भीतर
वह सिक्त सदा सुख सरिता में --
बहुत गहरी बात !
स्वागत व आभार मोहन जी !
हटाएंजग जैसा है बस वैसा है
जवाब देंहटाएंनिज मन को क्यों हम मलिन करें,
जो पल-पल रूप बदलता हो
उसे माया समझ नमन करें !
अप्रतिम जीवन दर्शन । गहन सृजन ।
स्वागत व आभार मीना जी !
हटाएंबहुत सुंदर सृजन। भवपूर्ण।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार हिमकर जी!
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