शुक्रवार, फ़रवरी 4

पंछी तुम और मार्च

पंछी, तुम और मार्च 

मदमाता मार्च ज्यों आया 
 सृष्टि फिर से नयी हो गयी 
 मधु के स्रोत फूट पड़ने को 
नव पल्लव नव कुसुम पा गयी I 

 भँवरे, तितली, पंछी, पौधे 
हुए बावरे सब अंतर में 
कुछ रचने जग को देने कुछ 
आतुर सब महकें वसंत में I 

 याद तुम्हें वह नन्हीं चिड़िया 
नीड़ बनाने जो आयी थी 
संग सहचर चंचु प्रहार कर 
 छिद्र तने में कर पाई थी I 

 वृत्ताकार गढ़ रहे घोंसला 
हांफ-हांफ कर श्रम सीकर से 
बारी-बारी भरे चोंच में 
 छीलन बाहर उड़ा रहे थे I 

 आज पुनः देखा दोनों को 
स्मृतियाँ कुछ जागीं अंतर में 
कैसे मैंने चित्र उतारे 
प्रेरित कैसे किया तुम्हीं ने I 

 देखा करतीं थी खिड़की से 
 क्रीडा कौतुक उस पंछी का 
 ‘मित्र तुम्हारा’ आया देखो 
कहकर देती मुझको उकसा I

 कैद कैमरे में वह पंछी 
नीली गर्दन हरी पांख थी 
तुमने दिल की आँख से देखा 
 लेंस के पीछे मेरी आँख थी 

 अनिता निहालानी २९ मार्च २०१०

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