शनिवार, जुलाई 31

नयन वातायन बने

नयन वातायन बने

कोष भीतर हो छिपाए

तृषित क्यों फिरते जहाँ में,

पूर्ण होकर क्यों अधूरे

गीत रचते इम्तहां में !


नजर से मिश्री लुटाओ

फूल सी मुस्कान भर कर,

बोल कोकिल कूक जैसे

जिंदगी में प्राण भर कर  !


चैन बाँटो दोस्ती दो

अनुराग झलके हर घड़ी,

दूत बनके शांति का तुम

दो जोड़ हर टूटी कड़ी !


तुम बहो जग को बहाओ

उर यह महासागर बने,

पुलक बन इक कौंध जाओ

दो नयन वातायन बनें !




अनिता निहालानी
३१ जुलाई २०१०

1 टिप्पणी:

  1. कोष भीतर हो छिपाए
    तृषित क्यों फिरते जहाँ में
    पूर्ण होकर क्यों अधूरे
    गीत रचते इम्तहां में I
    दिल की गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना , बधाई

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