मंगलवार, सितंबर 28

जीवन पल-पल यही सिखाये



जीवन पल-पल यही सिखाये

छोटी-छोटी बातों से जब, 

दीवाना यह दिल अकुलाया,

उलझी अनगढ़ी भाषा को न 

बूझ कोई स्वजन भी पाया !


इधर टटोला उधर निहारा,

समाधान इसका कब पाया,

आतुर हो फिर देखा भीतर 

जहाँ किसी को हँसते पाया !


जिसका होना ही सत्य यहाँ , 

शेष यहाँ सारी भ्रम माया ,

जीवन पल-पल यही सिखाये,

व्यर्थ ह्रदय  सपने बुन आया  !


जरा ठहर जब जाँचा परखा, 

सारे सपने निकले झूठे,

जिनमें कोई सार नहीं था, 

लगे ह्रदय को वही अनूठे !


स्वयं ही उर कामना गढ़ता,

रंग अनोखे उसमें भरता,

रही अपूर्ण यदि किसी कारण 

व्यर्थ स्वयं को घायल करता !


कुछ बन जाये , कुछ यश पाये  

सुख, सुनाम कुछ यहाँ कमाये 

इसी तरह के और स्वप्न भी, 

भाग्य अतीव महान बनाये !


जब भी भीतर जाकर देखा, 

सोया मिला क्षीरसागर में,

हर्षित,पुलकित पाया उसको

सुखमय परम योगनिद्रा में !




1 टिप्पणी:

  1. बहुत ख़ूबसूरत और शानदार...जीवन के सच को भी पिरो दिया है बहुत बहुत बधाई...

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