जीवन
जीवन एक सुनहरा अवसर !
मन अपना ब्रह्म सा फैले
ज्यों बूंद बने सागर अपार
नव कलिका से फुल्ल कुसुम
क्षुद्र बीज बने वृक्ष विशाल I
जीवन एक अनोखा अवसर !
मन यदि अमन बना सुध भूले
खो जाएं बूंदें सागर में
रूप बदल जाए कलिका का
मिट कर बीज मिलें माटी में I
जीवन एक आखिरी अवसर !
लेकिन हम ना मिटना चाहें
मन के गीत सदा दोहराएँ
हम ‘हम’ होकर ही जग में
क्योंकर आसमान छू पाएँ I
जीवन एक पहेली जैसा !
हो जाएँ यदि रिक्त स्वयं से
बूंद बहेगी बन के सरिता
स्वप्न सुप्त कलिका खिलने का
पनपेगा फिर बीज अनछुआ
जीवन यही संदेश दे रहा !
अनिता निहालानी
२९ सितम्बर २०१०
वाह...मुग्धकारी अतिसुन्दर रचना.!!!!
जवाब देंहटाएंमैं आभारी हूँ चर्चा मंच की,जहाँ से आपके ब्लॉग पर आने और इतनी सुन्दर रचना पढने का मुझे सुअवसर मिला...
सचमुच चर्चा मंच अच्छा कार्य कर रहा है, अन्य कविताएँ भी पढ़ें.
जवाब देंहटाएं