हवा नाम है उसका
डोलती फिरती है यूँ ही, इधर –उधर
पर ढूँढो तो नहीं आती नजर !
बाहर भी, भीतर भी उसका ही राज है,
वाहन भी चलने का सर उसके ताज है
वह है, तो हम हैं
गुण उसके क्या कम हैं ?
‘हवा से करते हैं बातें’ घुड़सवार,
‘हो जाते हवा’ कभी दोस्त यार
‘हवा निकल गयी’ सुनकर कठिन सवाल
‘भर गयी हवा’ प्रशंसा का जब लगा गुलाल
‘हवा उड़ी’ कारनामों की किसी के
‘हवाईयाँ भी उडती हैं’ चेहरों से
‘हवा पीकर’ कुछ लोग जिन्दा हैं यहाँ
‘बांध कर रखना चाहें हवा’ के परिंदों को यहाँ
‘हवा पलट गयी’ तो पूछेंगे जवाब
बिगड़ गए हैं ‘लगवा के हवा शहर की’ जनाब
‘हवा बिगाड़’ के रख देते हैं माहौल की
कुछ सिरफिरे गंवार
कुछ आते हैं होके ‘हवा के घोड़े पे सवार’ .....
अनिता निहालानी
२२ सितम्बर २०१०
nice
जवाब देंहटाएंबांध कर रखना चाहें हवा’ के परिंदों को यहाँ
जवाब देंहटाएं‘हवा पलट गयी’ तो पूछेंगे जवाब
बिगड़ गए हैं ‘लगवा के हवा शहर की’ जनाब
‘हवा बिगाड़’ के रख देते हैं माहौल की
कुछ सिरफिरे गंवार
कुछ आते हैं होके ‘हवा के घोड़े पे सवार’ .....
बहुत अच्छी रचना...हवा के रूप अनेक
यहां भी जरूर आएं
http://veenakesur.blogspot.com/
हवा 'को पढ़ते ही आसपास की हवा खुशगवार हो गई.
जवाब देंहटाएंमाधव जी,अभी दूध के दांत भी नहीं टूटे, और ब्लॉग लिखते-पढते हैं...
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