ढाई आखर वाला प्रेम
‘ढाई आखर वाले’ उस प्रेम को पाने के लिये
इस प्रेम की गली से तो गुजरना ही होगा,
पर एक बार उस प्रेम को चखने के बाद
इस प्रेम का स्वाद भी बदल जायेगा
अभी तो मैल जमी है जिह्वा पर
माया के बुखार वाली
तभी बेस्वाद है जिंदगी
कभी भर जाता है मन कड़वाहट से
कभी कसैले लगने लगते हैं रिश्ते
कभी आंसुओं से भीग जाता है दामन
उस प्रेम को चखते ही..
बदल जाता है सब कुछ जैसे
सब ओर वही प्रकाश भर जाता है
सबकी आँखों में भी झलकता है वही
उमड़ता है सहज स्नेह
छूट जाती हैं अपेक्षाएं
खो जाती हैं सारी मांगे
उस प्रेम की बाढ़ में
तिरोहित हो जाती है संकीर्णता
बहा ले जाता है सारा का सारा विषाद
एक ही साथ..
जन्म भर के लिये
वसंत छा जाता है भीतर !
अनिता निहालानी
२० मई २०११
प्रेम के तीसरे तल तक पहुँचने के लिए उसके दूसरे तल से होकर गुज़रना भी ज़रूरी है........बहुत शानदार......बहुत गहन......लाजवाब |
जवाब देंहटाएंबेहतरीन!!!
जवाब देंहटाएंसादर
तिरोहित हो जाती है संकीर्णता
जवाब देंहटाएंबहा ले जाता है सारा का सारा विषाद
एक ही साथ..
जन्म भर के लिये
वसंत छा जाता है भीतर
bahut sundar v vastvikta se bharpoor abhivyakti.badhai.
उस प्रेम को चखते ही..
जवाब देंहटाएंबदल जाता है सब कुछ जैसे
सब ओर वही प्रकाश भर जाता है
सबकी आँखों में भी झलकता है वही
उमड़ता है सहज स्नेह
छूट जाती हैं अपेक्षाएं
खो जाती हैं सारी मांगे
बहुत सशक्त रचना ...
एक आध्यात्मिक अनुभूति लिए सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंआत्मविभोर कर दिया इस हृदयस्पर्शी कविता ने. धन्यबाद.
जवाब देंहटाएंbahut hi sunder,sarthak ,hridaysparshi kavita ...!!
जवाब देंहटाएंआप सभी का हार्दिक आभार !
जवाब देंहटाएंसच कहूँ तो आपका लिखने का ये अंदाज़ बहुत अच्छा लग रहा है..बातें तो सोना से भी ज्यादा शुद्ध और कीमती है .पढ़वाने के लिए हार्दिक आभार ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव हैं । बहुत अच्छी रचना ।
जवाब देंहटाएंअनीता जी
जवाब देंहटाएंउस प्रेम को चखते ही..
बदल जाता है सब कुछ जैसे
सब ओर वही प्रकाश भर जाता है
बेहतरीन अभिव्यक्ति ..इस अनुभूति की ..गुजरना पड़ता है सभी तलों से ..तब जा के पहुँच पाते हैं उस ढाई आखर तक..बहुत सटीक शब्द दिए आपने बधाई
प्रेम तो बस प्रेम है. सुन्दर अभिव्यक्ति.
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