तू आनंद प्रेम का सागर
तू ही मार्ग, मुसाफिर भी तू
तू ही पथ के कंटक बनता,
तू ही लक्ष्य यात्रा का है
फिर क्यों खुद का रोके रस्ता !
मस्ती की नदिया बन जा मिल
तू आनंद प्रेम का सागर,
कौन से सुख की आस लगाये
तकता दिल की खाली गागर !
सूर्य उगा है नीले नभ में
खिडकी खोल उजाला भर ले,
दीप जल रहा तेरे भीतर
मन को जरा पतंगा कर ले !
मन की धारा सूख गयी है
कितने मरुथल, बीहड़ वन भी,
राधा बन के उसे मोड़ ले
खिल-खिल जायेंगे उपवन भी !
एक पुकार मिलन की जागे
खुद से मिलकर जग को पाले,
सहज गूंजता कण कण में जो
उस पावन अंतरे को गाले !
अनिता निहालानी
२३ मई २०११
एक पुकार मिलन की जागे
जवाब देंहटाएंखुद से मिलकर जग को पाले,
सहज गूंजता कण कण में जो
उस पावन अंतरे को गाले
बेहतरीन कविता.
सादर
तू ही तू......हर ओर जहाँ तक नज़र जाये.........लाजवाब पोस्ट....शुभकामनायें|
जवाब देंहटाएंसूर्य उगा है नीले नभ में
जवाब देंहटाएंखिडकी खोल उजाला भर ले,
दीप जल रहा तेरे भीतर
मन को जरा पतंगा कर ले
वाह !!! लाजवाब शब्द दिल में उतर गए