सोमवार, मई 16

सब संगीत बहा जाता है


सब संगीत बहा जाता है

स्रोत शांति का यदि भीतर है 
सारा जग अपना लगता है,
जो है जिसके पास, जगत !
वह, वही तुम्हें दे सकता है I

भीतर यदि मुस्कान भरी है
हँस सकता है संग सहर के,
फूलों के सँग बढा दोस्ती
चिड़ियों के सँग गा सकता है !

सभी सुखी हों और स्वस्थ भी
आनन्दित हो जाएँ सब ही,
सहज लुटाता ममता सारी
सेवा भाव जगा करता है !

लेकिन भीतर हो सन्नाटा
कुछ भी नजर कहाँ आता है,
जीवन की आपाधापी में
सब संगीत बहा जाता है !

तन पीड़ित हो, इंद्रधनुष भी
मन को भला नहीं लगता,
मन आकुल हो चाँद पूर्णिमा
का भी सुख न दे पाता है !

लोभ भरा हो अंतर में तो
दुखी नजर कहाँ आते हैं,
भूखे-प्यासे बच्चे भी तब  
नजर अंदाज किये जाते हैं !

भरी तिजोरी रहे सलामत
दुआ यही निकलती दिल से,
अपनों से भी खींचातानी
दान कहाँ दिया जाता है !

चुक गयी संवेदनायें जिसकी
 वह दिल कब खिल पाता है,
जीवन की आपाधापी में
सब संगीत बहा जाता है !

 अनिता निहालानी
१६ मई २०११


8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर भाव रचना के ...सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. चुक गयी संवेदनायें जिसकी
    वह दिल कब खिल पाता है,
    जीवन की आपाधापी में
    सब संगीत बहा जाता है !

    बहुत ही मनमोहक कविता.

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. अनीता जी,

    हैट्स ऑफ इस पोस्ट के लिए.......भीतर और बाहर का अभूतपूर्व मिश्रण.......शानदार |

    जवाब देंहटाएं
  4. इस कविता ने एक पुरानी कहावत याद दिला दी कि यह संसार तो दर्पण है,हम मुस्कराते हें तो यह भी मुस्कराता है ,हम गुस्सा करते हैं तो यह भी गुस्सा करता है.

    जवाब देंहटाएं
  5. आनंद आ गया ...सरलता से मन मुग्ध हो गया !.
    :-)
    शुभकामनायें आपको !

    जवाब देंहटाएं
  6. संगीताजी, यशवंतजी, इमरान जी, दीदी और सतीश जी, आप सभी का दिल से आभार !

    जवाब देंहटाएं
  7. भीतर यदि मुस्कान भरी है
    हँस सकता है संग सहर के,
    फूलों के सँग बढा दोस्ती
    चिड़ियों के सँग गा सकता है.....behad khoobsurat likhi hain.

    जवाब देंहटाएं
  8. कितना आनंद बिखेर देती हैं आप ..कितना आभार प्रकट करूँ ?

    जवाब देंहटाएं