सोमवार, जून 6

कहाँ जा रहा देश आज है


अधरों पर कितने सवाल हैं


आज करोड़ों आँखें नम हैं
भौंचक तकती हुई निगाहें,
कहाँ जा रहा देश आज है
किसने दूषित कर दीं राहें !

अधरों पर कितने सवाल हैं
कितने दिल मायूस हुए हैं,
कितने आँसू रोये हैं दिल
कितने अरमां टूट गए हैं ! 

जिस पर बड़ा गर्व करते थे
दुनिया का आदर्श बताते,
जिस लोकतंत्र की गाथाएं
सारे विश्व को गा सुनाते !

आज वहीं लोग लज्जित हैं
अपनों पर ही जुल्म हुए हैं,
जिनसे रक्षा की उम्मीद थी
उनसे ही तो ठगे गए हैं !

जिनसे थी गुहार लगाई
भ्रष्ट व्यवस्था को बदलो,
बहुत हो गया खेल पुराना
अब तो अपने ढंग बदलो !

वही सियासत के बाशिंदे
बन आये जब खूनी दरिंदे,
चैन से सोये लोगों पर
जब कसे कुशासन के फंदे !

वैचारिक क्रांति होनी थी
नयी हवा यहाँ बहनी थी,
मजबूरों को हक मिलना था
रोटी भूखों को मिलनी थी !

देशभक्त जो जूझ रहे हैं  
सुनाम कर जायेंगे अपना,
भारत को समृद्ध बनाने  
का सुंदर है उनका सपना !

जिन्हें कुशासन ने घेरा है
उनके दिल में जोश भरा है,
देशभक्ति के मतवालों का
किसने जज्बा कभी हरा है !

यह आग कभी बुझ ना पाए
देश की आशा बने फलवती,
काला धन भी वापस आये
भ्रष्टाचार न हो बलवती !

न्याय मिले, सम्मान मिले
हो सबको ही हक जीने का,
भारत दुनिया में मिसाल हो
हार हो विश्व के सीने का !

जितनी निंदा होगी कम है
अमानवीय कृत्य घटा जो,
देश कभी भी ना भूलेगा
कहर का बादल इक फटा जो !

अनिता निहालानी
६ जून २०११  





  

6 टिप्‍पणियां:

  1. शत प्रतिशत सत्य अब तो लोकतंत्र के मायने बेमानी लगते है बहुत सुंदर भावाव्यक्ति , बधाई

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  2. शासन का पाठ पढने से पहले मानवता का पाठ तो पढना ही पडेगा। वरना समय की झाडू कब इन्हें बुहार देगी पता ही नहीं चलेगा।

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  3. जिनसे थी गुहार लगाई
    भ्रष्ट व्यवस्था को बदलो,
    बहुत हो गया खेल पुराना
    अब तो अपने ढंग बदलो !

    वही सियासत के बाशिंदे
    बन आये जब खूनी दरिंदे,
    चैन से सोये लोगों पर
    जब कसे कुशासन के फंदे !
    yahi to dukhad sthiti hai

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  4. hamare pirya pradhanmantree manmohan singh jee aese to na thae ,fir ye kaese ho gaya itna ghor julm.

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  5. जनता का जागना बहुत ज़रूरी है....इस देश को फिर क्रांति की ज़रुरत है......बहुत ही सुन्दर और जोश दिलाने वाली कविता है......आभार |

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