कुदरत न घूंघट खोलती
जो घट रहा सब स्वप्न है
क्यों दिल जलाते हो यहाँ,
जो दिख रहा वह है नहीं
क्यों घर सजाते हो यहाँ !
है ओस की एक बूंद जो
मोती बनी, उड़ जायेगी,
मुड़ देख लो जरा रेत पर
मरीचिका खो जायेगी !
यहाँ बज रही नित बांसुरी
निज सुर लगाये हर कोई
क्यों चाह होती है हमें
वह गीत मेरा गाए ही !
निज बोध न होता यदि
कुदरत न घूंघट खोलती
पा कर परस इक किरण का
सोयी कमलिनी बोलती !
अनिता निहालानी
१३ जून २०११
घर सिर्फ तभी सज सकता है सही मायने में ,जब हम घर को उसके लिये सजाएं जिसके लिये कमलिनी बोलती है.
जवाब देंहटाएंनिज बोध न होता यदि
जवाब देंहटाएंकुदरत न घूंघट खोलती
पा कर परस इक किरण का
सोयी कमलिनी बोलती !
बहुत खूब कहा है आपने ।
यहाँ बज रही नित बांसुरी
जवाब देंहटाएंनिज सुर लगाये हर कोई
क्यों चाह होती है हमें
वह गीत मेरा गाए ही !
वाह! बहुत अच्छे भाव।
बेहद उम्दा भाव संजोये हैं।
जवाब देंहटाएंहै ओस की एक बूंद जो
जवाब देंहटाएंमोती बनी, उड़ जायेगी,
मुड़ देख लो जरा रेत पर
मरीचिका खो जायेगी
ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं.
सादर
जो घट रहा सब स्वप्न है
जवाब देंहटाएंक्यों दिल जलाते हो यहाँ,
जो दिख रहा वह है नहीं
क्यों घर सजाते हो यहाँ !
बहुत सार्थक सन्देश...
जो घट रहा सब स्वप्न है
जवाब देंहटाएंक्यों दिल जलाते हो यहाँ,
जो दिख रहा वह है नहीं
क्यों घर सजाते हो यहाँ !
बहुत खूब अनीता जी - वाह. खुद की ये पंक्तियाँ याद आयीं-
किसे खबर है अगले पल की
फिर भी सबको चिंता कल की
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएंपरखना मत ,परखने से कोई अपना नहीं रहता ,कुछ चुने चिट्ठे आपकी नज़र
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है ओस की एक बूंद जो
जवाब देंहटाएंमोती बनी, उड़ जायेगी,
मुड़ देख लो जरा रेत पर
मरीचिका खो जायेगी
खूबसूरती से कहा है कि सब नश्वर है ..फिर भी भटक रहे हैं ..
एक एक लफ्ज़ बेहतरीन है.......सत्य के घूँघट खोलता हुआ......सुभानाल्लाह |
जवाब देंहटाएंउम्दा...
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