श्वासों की समिधा को
श्वासों की समिधा को
अंतर की हवि कर दें,
पल-पल में जी लें फिर
अमृत यूँ हम पी लें !
उर के घट पावन में
प्रियतम जो बसता है,
अर्पण कर मन अपना
उसकी ही छवि भर दें !
अग्नि है शीतल सी
छवि उसकी कोमल सी,
पल-पल का साक्षी वह
स्मृति है श्यामल सी !
श्वासों की माला को
हर पल ही याद रखें,
उसको ही कर अर्पित
मुक्ति का स्वाद चखें !
यूँ ही सा जीवन जो
क्रीड़ा सा बन भाए,
कृत्यों का करना ही
उनका फल बन जाये !
जैसे वह बाँट रहा
दोनों ही हाथों से,
भर झोली बिखराएं
हम भी कुछ सौगातें !
दाता वह दानी हम
ज्ञाता वह ज्ञानी हम,
उसकी ही थाती को
चरणों पर बलि कर दें !
उसकी ही शक्ति को
जगकर हम पहचानें,
उसकी ही भक्ति को
जीवन का फल मानें !
भीतर जो रहता है
युग-युग का है साथी,
मौनी जब होता मन
झलकाता वह ज्योति !
अनिता निहालानी
२४ जून २०११
उसको ही कर अर्पित
जवाब देंहटाएंमुक्ति का स्वाद चखें !
बहुत अच्छा लिखा है , बधाई !
दाता वह दानी हम
जवाब देंहटाएंज्ञाता वह ज्ञानी हम,
उसकी ही थाती को
चरणों पर बलि कर दें !
बहुत अच्छा लिखा है , बधाई !
यही भाव आ जाये तो जीवन सफ़ल हो जाये…………बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंवाह ..बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ।
जवाब देंहटाएंबेशक अच्छा लिखा है ...अच्छा लगा पढकर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.......जीवन का प्रसाद .....शानदार|
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