शनिवार, जून 4

दिल्ली में चल रहे एतिहासिक सत्याग्रह के अवसर पर आज पुनः बाबा के लिये श्रद्धा सुमन


बाबा रामदेव जी

हे युगपुरुष ! हे युग निर्माता !
हे नव भारत भाग्य विधाता !
हे योगी ! सुख, प्रेम प्रदाता
तुम उद्धारक, हे दुःख त्राता !

तुम अनंत शक्ति के वाहक
योगेश्वर, तुम सच्चे नेता !
प्रेम की गंगा बहती तुममें
तुमने कोटि दिलों को जीता !

जाग रहा है सोया भारत
आज तुम्हारी वाणी सुनकर,
करवट लेता ज्यों इतिहास
अंधकार में उगा है दिनकर !

तुम नई चेतना बन आये
कांपे अन्यायी, जन हर्षे,
तोड़ने गुलामी की बेड़ियां  
तुम सिंह गर्जना कर बरसे !

तन-मन को तुमने साधा है
हो घोर तपस्वी, कर्मशील तुम,
श्वास- श्वास को देश पे वारा
अद्भुत वक्ता, हो मनस्वी तुम !

शब्दों में शिव का तांडव है
आँखों से हैं राम झलकते,
कृष्ण की गीता बन हुंकारो
नव क्रांति के फूल महकते !

जीवन के हर क्षेत्र के ज्ञाता
कैसे अनुपम ध्यानी, ज्ञानी,
वैद्य अनोखे, किया निदान
भारत की नब्ज पहचानी !

 राम-कृष्ण की संतानें हम
सत्य-अहिंसा के पथ छूटे,
डरे हुए सामान्य जन सब
आश्वासन पाकर गए लूटे !

आज पुण्य दिन, बेला अनुपम
दुलियाजान की भूमि पावन,
गूंज उठी हुंकार तुम्हारी 
दिशा-दिशा में गूँजा गर्जन !

आज अतीत साकार हो उठा
संत सदा रक्षा को आये,
जब जब भ्रमित हुआ राष्ट्र
संत समाज ही राह दिखाए !

भूला नहीं है भारत अब भी
रामदास व गोविन्द सिंह को,
अन्याय से मुक्त कराने
खड़ा किया था जब सिंहों को !

आज पुनः पुकार समय की
देवत्व तुम्हारा रूप प्रकट,
त्राहि-त्राहि मची हुई है
समस्याओं का जाल विकट !

नयी ऊर्जा सबमें भरती
ओजस्वी वाणी है तुम्हारी,
बदलें खुद को जग को बदलें
जाग उठे चेतना हमारी !

योग की शक्ति भीतर पाके
बाहर सृजन हमें करना है,
आज तुम्हारे नेतृत्व में
देश नया खड़ा करना है !

व्याधि मिटे समाधि पाएँ
ऐसा एक समाज बनायें,
जहाँ न कोई रोगी, पीड़ित
स्वयं की असलियत पा जाएँ  !

भ्रष्टाचार मिटे भारत से
पुनर्जागरण, रामराज्य हो,
एक लक्ष्य, एकता साधें
नव गठित भारत, समाज हो !

कोटि कोटि जन साथ तुम्हारे
उद्धारक हो जन-जन के तुम,
पुण्य जगें हैं उनके भी तो
विरोध जिनका करते हो तुम !

अनिता निहालानी
४ जून २०११




 
 


7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर ..आपकी लेखनी को सादर नमन

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  2. शब्दों में शिव का तांडव है
    आँखों से हैं राम झलकते,
    कृष्ण की गीता बन हुंकारो
    नव क्रांति के फूल महकते !
    waah

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  3. शब्दों में शिव का तांडव है
    आँखों से हैं राम झलकते,
    कृष्ण की गीता बन हुंकारो
    नव क्रांति के फूल महकते !

    bahut sunder rachna ..!!

    जवाब देंहटाएं
  4. व्याधि मिटे समाधि पाएँ
    ऐसा एक समाज बनायें,
    जहाँ न कोई रोगी, पीड़ित
    स्वयं की असलियत पा जाएँ bahut saarthak rachanaa.badhaai sweekaren.


    please visit my blog.thanks.

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  5. बहुत बढ़िया रचना. बाबा जी पर. किसी ना किसी को तो अब ये प्रश्न पूछने ही होंगे. सार्थक और सामायिक रचना.

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  6. इस बारे मैं चुप रहना ही ठीक समझूंगा.....रही बात आपकी पोस्ट की तो शानदार शब्दों का प्रयोग करके आपने एक बेहतरीन कविता कही है |

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