हम और वह
हम अहसान जताते उस पर, जिसको अल्प दान दे देते
किन्तु परम का खुला खजाना, बिन पूछे ही सब ले लेते !
दो दाने देकर भी हम तो, कैसे निर्मम ! याद दिलाते
जन्मों से जो खिला रहा है, क्यों कर फिर उसके हो पाते ?
कैसे मोहित हुए डोलते, मैं बस मैं की भाषा बोलें
परम कृपालु उस ईश्वर का, कैसे फिर दरवाजा खोलें !
कटु वाणी के तीर चलाते, नहीं जानते बीज बो रहे
क्रोध की इस विष की खानि से, निज पथ में शांति खो रहे !
वह करुणा का सागर है, नित अकारण ही रहे दयालु
सदा सहारा देता सबको, शांति का सागर, प्रेम कृपालु !
अनिता निहालानी
२६ जून २०११
सदा सहारा देता सबको,
जवाब देंहटाएंसदा सहारा देता सबको |
भूल न जाओ भैया रब को ||
क्रोध की इस विष की खानि से, निज पथ में शांति खो रहे
जवाब देंहटाएंbilkul sahi kah rahi hain anita ji aap.
अति प्रेरक रचना।
जवाब देंहटाएंbahut sundar sandesh ko ham tak preshit kiya hai aapne .aabhar
जवाब देंहटाएंवाह! अनीता जी बहुत सुन्दर प्रस्तुति है आपकी.
जवाब देंहटाएंआपको तहे दिल से आभार.
बहुत सुन्दर भाव ... सार्थक सन्देश देती अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंमन को सुकून से भर देने वाले भाव।
जवाब देंहटाएं---------
विलुप्त हो जाएगा इंसान?
ब्लॉग-मैन हैं पाबला जी...
bahut sunder sandesh deti...jan jan ko jagrit karti achhi rachna.
जवाब देंहटाएंदो दाने देकर भी हम तो, कैसे निर्मम ! याद दिलाते
जवाब देंहटाएंजन्मों से जो खिला रहा है, क्यों कर फिर उसके हो पाते ?
बहुत सुन्दर भावों से परिपूर्ण कविता...शायद पहली बार आपके ब्लॉग पर आया बहुत अच्छा लगा...मेरे भी ब्लॉग पर घूम जाइए
वह करुणा का सागर है, नित अकारण ही रहे दयालु
जवाब देंहटाएंसदा सहारा देता सबको, शांति का सागर, प्रेम कृपालु !
bahut sunder abhibyakti.badhaai.
please visit my blog.thanks.
कटु वाणी के तीर चलाते, नहीं जानते बीज बो रहे
जवाब देंहटाएंक्रोध की इस विष की खानि से, निज पथ में शांति खो रहे !
वह करुणा का सागर है, नित अकारण ही रहे दयालु
सदा सहारा देता सबको, शांति का सागर, प्रेम कृपालु !
बहुत ही सुन्दर और प्रभावशाली. उच्च कोटि की गहरी अनुभूति. आभार इस आध्यात्मिक रचना के लिए.
दो दाने देकर भी हम तो, कैसे निर्मम ! याद दिलाते
जवाब देंहटाएंजन्मों से जो खिला रहा है, क्यों कर फिर उसके हो पाते ?
बहुत सुन्दर.....