बुधवार, सितंबर 21

जहां प्रीत की गागर ढुलके


जहां प्रीत की गागर ढुलके

खो जाते हैं प्रश्न जहां सब
एक प्रकाश ही दिपदिप करता,
समाधान हो जाता मन का
कोई सरस प्रेम है भरता !

सीमाएं मिट जातीं सारी
हम अनंत में दौड लगाते,
पल में सारे नक्षत्रों का
भ्रमण किये फिर वापस आते !

कण-कण जग का भेद खोलता
तन भी पिघल-पिघल ज्यों जाता,
मन का तो कुछ पता न चलता
एक ही तत्व नजर बस आता !

वह परम, वह अपना प्रियतम
बाट जोहता कब घर लौटें,
बार-बार भेजे संदेशे
कब अपना बिखराव समेटें !

जाने कौन से लोभ की खातिर
माया पंक में हम डूबे हैं,
अब तक तो कुछ चैन न पाया
बांधे कितने मंसूबे हैं !

भीतर ही वह देश अनोखा
जहां सरसता टपटप टपके,
जहां जले हैं दीप हजारों
जहां प्रीत की गागर ढुलके !

6 टिप्‍पणियां:

  1. भीतर ही वह देश अनोखा
    जहां सरसता टपटप टपके,
    जहां जले हैं दीप हजारों
    जहां प्रीत की गागर ढुलके !
    प्यार बरसाती हुई रचना वाह वाह ...

    जवाब देंहटाएं
  2. विछोह और उम्मीद के दिए |
    तेज हवाओं में सुरक्षित लिए ||

    जवाब देंहटाएं
  3. जाने कौन से लोभ की खातिर
    माया पंक में हम डूबे हैं,
    अब तक तो कुछ चैन न पाया
    बांधे कितने मंसूबे हैं !

    भीतर ही वह देश अनोखा
    जहां सरसता टपटप टपके.

    Waah ... Jivan ka sach.

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर हमेशा की तरह :-)

    जवाब देंहटाएं