शहंशाहों की रीत निराली
मंदिर और शिवाले छाने, कहाँ-कहाँ नहीं तुझे पुकारा
चढ़ी चढ़ाई, स्वेद बहाया, मिला न किन्तु कोई किनारा !
बना रहा तू दूर ही सदा, अलख, अगाध, अगम, अगोचर
भीतर का सूनापन बोझिल, ले जाता था कहीं डुबोकर !
कृत्य के बदले जो भी मिलता, तभी अचानक स्मृति आयी
कीमत उससे कम ही रखता, यह अनुपम दी सीख सुनाई !
जो मिल जाये अपने बल से, मूल्य कहाँ उसका कुछ होगा ?
कृत्य बड़ा होगा जिस रब से, पाकर उसको भी क्या होगा ?
प्रेम से ही मिलता वह प्यारा, सदा बरसती निर्मल धारा,
चाहने वाला जब हट जाये, तत्क्षण बरसे प्रीत फुहारा !
वह तो हर पल आना चाहे, कोई मिले न जिसे सराहे,
आकाक्षाँ चहुँ ओर भरी है, किससे अपनी प्रीत निबाहे !
इच्छाओं से हों जब खाली, तभी समाएगा वनमाली,
स्वयं से स्वयं ही मिल सकता, शहंशाहों की रीत निराली !
निराली रचना
जवाब देंहटाएंस्वेद ????? इस का अर्थ नहीं समझ पाया अनीता जी..........बाकि पोस्ट बहुत सुन्दर है प्रेम में डूबकर ही प्यारे को पाया जा सकता है ........बहुत सुन्दर|
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर , रसमयी, गहन भावो को समेटे शानदार भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंइमरान जी, स्वेद का अर्थ होता है पसीना..
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति ......
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुती....
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंजो मिल जाये अपने बल से, मूल्य कहाँ उसका कुछ होगा ?
जवाब देंहटाएंकृत्य बड़ा होगा जिस रब से, पाकर उसको भी क्या होगा ?समझने वाली बात है.बड़ी गूढ़ है कविता.
@शुक्रिया अनीता जी स्वेद का अर्थ बताने के लिए|
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति ...बधाई।
जवाब देंहटाएंइच्छाओं से हों जब खाली, तभी समाएगा वनमाली,
जवाब देंहटाएंस्वयं से स्वयं ही मिल सकता, शहंशाहों की रीत निराली !
बहुत सुन्दर भावमयी और प्रेममयी अभिव्यक्ति..आभार
शक्ति-स्वरूपा माँ आपमें स्वयं अवस्थित हों .शुभकामनाएं.
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