सोमवार, सितंबर 26

शहंशाहों की रीत निराली


शहंशाहों की रीत निराली

मंदिर और शिवाले छाने, कहाँ-कहाँ नहीं तुझे पुकारा
चढ़ी चढ़ाई, स्वेद बहाया, मिला न किन्तु कोई किनारा ! 

बना रहा तू दूर ही सदा, अलख, अगाध, अगम, अगोचर
भीतर का सूनापन बोझिल, ले जाता था कहीं डुबोकर ! 

कृत्य के बदले जो भी मिलता, तभी अचानक स्मृति आयी
कीमत उससे कम ही रखता, यह अनुपम दी सीख सुनाई !

जो मिल जाये अपने बल से, मूल्य कहाँ उसका कुछ होगा ?
कृत्य बड़ा होगा जिस रब से, पाकर उसको भी क्या होगा ? 

प्रेम से ही मिलता वह प्यारा, सदा बरसती निर्मल धारा,
चाहने वाला जब हट जाये, तत्क्षण बरसे प्रीत फुहारा ! 

वह तो हर पल आना चाहे, कोई मिले न जिसे सराहे,
आकाक्षाँ चहुँ ओर भरी है, किससे अपनी प्रीत निबाहे ! 

इच्छाओं से हों जब खाली, तभी समाएगा वनमाली,
स्वयं से स्वयं ही मिल सकता, शहंशाहों की रीत निराली !

12 टिप्‍पणियां:

  1. स्वेद ????? इस का अर्थ नहीं समझ पाया अनीता जी..........बाकि पोस्ट बहुत सुन्दर है प्रेम में डूबकर ही प्यारे को पाया जा सकता है ........बहुत सुन्दर|

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  2. वाह बहुत सुन्दर , रसमयी, गहन भावो को समेटे शानदार भावाव्यक्ति।

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  3. इमरान जी, स्वेद का अर्थ होता है पसीना..

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  4. जो मिल जाये अपने बल से, मूल्य कहाँ उसका कुछ होगा ?
    कृत्य बड़ा होगा जिस रब से, पाकर उसको भी क्या होगा ?समझने वाली बात है.बड़ी गूढ़ है कविता.

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  5. @शुक्रिया अनीता जी स्वेद का अर्थ बताने के लिए|

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  6. इच्छाओं से हों जब खाली, तभी समाएगा वनमाली,
    स्वयं से स्वयं ही मिल सकता, शहंशाहों की रीत निराली !

    बहुत सुन्दर भावमयी और प्रेममयी अभिव्यक्ति..आभार

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  7. शक्ति-स्वरूपा माँ आपमें स्वयं अवस्थित हों .शुभकामनाएं.

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