बुधवार, दिसंबर 14

जग में जितना ढूँढा उसको


जग में जितना ढूँढा उसको


क्या कोई ऐसा प्रांगण है
उगे जहाँ हैं सुरभि कमल ?
जहाँ पहुँच कर दोनों मिलते
 परम ब्रह्म व जीव अमल !

जग में जितना ढूँढा उसको
कहीं न पाया अविरत प्यार,  
होश जगे तो भीतर झाँकें,
सुना जहाँ है इक भंडार !

पल-पल जन्मे पल-पल हत हो,
इस सृष्टि का इक-इक कण-कण
यह तन एक नगर है जिसमें,
 छिपे हुए हैं अगणित पल-क्षण !

भुला दिया है जिसको हमने,
वह अपना ही होगा विस्तार
याद आ जाये जिस पल उसकी ,
शायद मिल जायेगा प्यार !




7 टिप्‍पणियां:

  1. जग में जितना ढूँढा उसको
    कहीं न पाया अविरत प्यार,
    होश जगे तो भीतर झाँकें,
    सुना जहाँ है इक भंडार !

    उसको पाने के लिए स्वयं में ही झांकना होगा .. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  2. भुला दिया है जिसको हमने,
    वह अपना ही होगा विस्तार
    याद आ जाये जिस पल उसकी ,
    शायद मिल जायेगा प्यार !
    आपकी रचना बहुत कुछ सिखा जाती है...

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  3. आज की इस रचना की जितनी तारीफ़ की जाये कम है………हम मुडना ही तो नही जानते वरना कुछ भी कहीं ढूँढने की जरूरत नही है।

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  4. जग में जितना ढूँढा उसको
    कहीं न पाया अविरत प्यार,
    होश जगे तो भीतर झाँकें,
    सुना जहाँ है इक भंडार
    इंसान मृगतृष्णा में भटक रहा है कभी अपने अन्दर छुपे रहस्य को देख ही नहीं पता
    बहुत सुन्दर रचना

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  5. जग में जितना ढूँढा उसको
    कहीं न पाया अविरत प्यार,
    होश जगे तो भीतर झाँकें,
    सुना जहाँ है इक भंडार !....
    ....
    हाँ सुना तो मैंने भी है दी...और अब देखते हैं आगे की अभी ये भंडार कितनी दूर है ...एकला चलो एकला चलो एकला चलो रे !

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  6. भुला दिया है जिसको हमने,
    वह अपना ही होगा विस्तार
    याद आ जाये जिस पल उसकी ,
    शायद मिल जायेगा प्यार !
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति , बधाई

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  7. वन्दना जी, यशवंत जी, आनंद जी, सुनील जी, राजपूत जी, संजय जी और संगीता जी, आप सभीका अभिनन्दन और आभार!

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