देने वाला देता हर पल
मौन में ही संवाद घट रहा
दोनों ओर से प्रेम बंट रहा,
एक नशीली भाव दशा है
ज्यों चन्द्र से मेघ छंट रहा !
एक अचलता पर्वत जैसी
एक धवलता बादल जैसी,
कोई मद्धिम राग गूंजता
एक सरलता गाँव जैसी !
गूंज मौन की फैली नभ तक
खबर इश्क की पहुंची रब तक,
कैसे, कोई, कहाँ छिपाए
खुशबू डोली अंतरिक्ष तक !
एक अनल शीतल जलती है
एक आस भीतर पलती है,
यह पल यहीं ठहर ही जाये
कब ऐसी घड़ियाँ मिलती हैं !
देने वाला देता हर पल
टाला करते हम कह कल-कल
अहर्निश सभी सदा दौड़ते
कौन रुका है यहाँ एक पल !
sundar bhavmayi prastuti .aabhar
जवाब देंहटाएंदेने वाला देता हर पल
जवाब देंहटाएंटाला करते हम कह कल-कल
अहर्निश सभी सदा दौड़ते
कौन रुका है यहाँ एक पल !
.....बिलकुल सच...बहुत सार्थक और सुंदर प्रस्तुति..आभार
बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंबढ़िया अभिव्यक्ति अनीता जी..
सादर.
सुन्दर! सत्य!!
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा रचना हकीकत बयाँ करती हुयी।
जवाब देंहटाएंएक अनल शीतल जलती है
जवाब देंहटाएंएक आस भीतर पलती है,
यह पल यहीं ठहर ही जाये
कब ऐसी घड़ियाँ मिलती हैं ! ..
nice..
bahut sundar bhavon ko pragat karti abhivyakti.badhai.
जवाब देंहटाएंउसके कर तो खुले सदा हैं
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना...
सादर.
देने वाला देता हर पल
जवाब देंहटाएंटाला करते हम कह कल-कल
अहर्निश सभी सदा दौड़ते
कौन रुका है यहाँ एक पल !
बहुत सुंदर भाव ... देने वाला तो सच ही सब कुछ देता है