महादेवी वर्मा ने कहीं कहा है, ‘कविता भाषा का
फूल है’, कविता हमें अपने आसपास को देखने की एक नयी नजर देती है, जिन बातों को हम
रोज अखबार में पढ़कर भुला देते है वे किसी कवि को विचलित कर देती हैं और उसकी
दृष्टि से समाज समस्या को अपने स्तर पर न केवल महसूस करता है, बल्कि उसके विरोध
में खड़ा भी होता है
खामोश खामोशी और हम के चौथे कवि हैं बिहार के छोटे से जिले नवादा के निवासी धीरज
कुमार. इन्हें लिखने का शौक रेडियो पर गजलों का कार्यक्रम सुनकर हुआ. आजकल यह
हैदराबाद में फ्रेंच भाषा के छात्र हैं. गजल सुनना व लिखना इनकी रुचि है. इस पुस्तक
में इनकी तीन रचनायें हैं.
पहली रचना राह इंसानियत की में मजहब के
नाम पर होने वाले नफरत के खेल पर कई सवाल उठाये गए हैं-
बेहतर है रास्ता इंसानियत का उसे है चुना किसने
होते हैं फसाद पल-पल ये मजहब का जाल है बुना
किसने
... ...
दुनिया की आंधी दौड़ में मजहब भी अब कहीं गम हो
गए
वो एक दीया इंसानियत का जल रहा था दिया है बुझा किसने
दूसरी रचना में समाज में नारियों की दहेज के नाम
पर होते अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई गयी है, मेरी नन्हीं शीर्षक से लिखी
कविता उम्मीद की लौ जगाती है, जिसमें लेखक एक ऐसे समाज की रचना का ख्वाब देखता है
जहाँ उसकी अजन्मी बच्ची चैन से जन्म ले सके और आजादी से जी सके.
हर रोज की तरह
चाँद ने आखिरी करवट ली
और सूरज ने आपने मुँह से चादर हटायी
मैं भी निकला सैर को
...
रास्ते में एक अनजानी रूह से मुलाकत हो गयी
देखा और चौंका
ये तो वही बुधिया थी
जो आई थी कल अखबार में
जला दिया गया था जिसे दहेज को
....
यूँ लग रहा था कि
मेरी ही बेटी को जला दिया गया है
...
फिर लगा मेरी नन्हीं भी तो
आँख खोलेगी इसी वसुंधरा पर
उसे भी जला दिया जायेगा
और पिता होकर भी
मैं कुछ न कर पाउँगा
... ..
सामने ही संसद भवन था
दूरी तो ज्यादा नहीं थी
पर फासला बहुत था जो तय करना था
...
अकेला चलने को भी तैयार था
नन्हीं ने लड़ने की शक्ति दी थी
..
मेरी नन्हीं तुम आओ इस धरा पर
तुम्हें मिलेगा एक स्वछन्द जीवन, उन्मुक्त हवा
एक पिता का वादा है तुमसे
अंतिम कविता का शीर्षक नूर-ए-इश्क है-
चाँदनी गर तेरा नूर है, तो इश्क मेरा नूर है
चाँद गर जिंदगी तेरी, तो इश्क मेरा जरूर है
... ...
अभी दो पहर गुजरे हैं, अभी मीलों का सफर है बाकी
चल-चला तू ये न सोच कि मंजिल कितनी दूर है
धीरज जी की रचनाओं में समाज को विद्रूपताओं से
मुक्त करने की तड़प है और एक ऐसे समाज का सपना भी जहाँ सभी प्रेम से रहते हों. आशा
है आपको भी इन्हें पढ़कर सुकून मिलेगा.
एक सहज सरल पुस्तक परिचय।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...
जवाब देंहटाएंमनोज जी, व पूनम जी आपका स्वागत व आभार!
जवाब देंहटाएंधीरज जी को हार्दिक शुभकामना..
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