बुधवार, जून 25

भूलना फितरत हमारी


भूलना फितरत हमारी


हर कदम पर इक चुनौती हर कदम पर इक दोराहा
हर कदम इक होश माँगे दे झलक उसकी जो चाहा

भूलना फितरत हमारी भूल जाते हर खुदाई
पुनः तकते आसमां को रिश्ता हर उसने निबाहा

जाने कैसी फांस भीतर आदमी के दिल में है
गुलशनों को काट उसने मरूथलों को है सराहा

क्या नहीं है पास उसके जाने क्या फिर खोजता
इक ललक सोने न देती बड़ी शिद्दत से कराहा

कैद अपने कब्र में है मौत से पहले हुआ
जिन्दगी जी भी न पाया मृत्यु का आया चौराहा  

8 टिप्‍पणियां:

  1. कैद अपने कब्र में है मौत से पहले हुआ
    जिन्दगी जी भी न पाया मृत्यु का आया चौराहा
    ....बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति...

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  2. अपनी करनी का फल भुगत रहा है इंसान फिर भी नही संभलता ... सार्थक सन्देश देती रचना

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  3. बहुत खूब कहा है फलसफा हकीकत आज की।

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  4. क्या नहीं है पास उसके जाने क्या फिर खोजता
    इक ललक सोने न देती बड़ी शिद्दत से कराहा
    बहुत सुन्दर भाव..अनीता जी बधाई

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  5. वाह बहुत खूब हर एक शेर अपनी कहानी आप कहता हुआ |

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  6. जाने कैसी फांस भीतर आदमी के दिल में है
    गुलशनों को काट उसने मरूथलों को है सराहा

    बहुत खूब, बढ़िया , हर शेर लाजवाब !
    सादर !

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  7. कैलाश जी, वीरू भाई, इमरान, संध्या जी, माहेश्वरी जी, डॉ संध्या जी, शिवनाथ जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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