बुधवार, जून 10

आषाढ़ की एक रात



आषाढ़ की एक रात


बरस बरस दिन भर
पल भर विश्राम लेते बादल
ठिठक गये हैं अम्बर पर
अँधियारा छाया है नीचे ऊपर
बेचैन होंगे चाँद, तारे भी
झांक लें धरा
गा रहे जो गीत झींगुर, सुनने
उसे जरा
युगलबंदी मेढकों की
जुगनुओं की सुप्रभा
रातरानी की महक
जो उड़ रही है हर कहीं
रात अंधियारी लुभाती
नम हुई हर श्वास भी !

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर रचना
    इस चिल्चिलाती गर्मी मे बर्सात की याद दिला दी आपने

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  2. badalte mausum ki barish bahut acchi lagti hai. bahut sunder rachana ..

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  3. बहुत भावपूर्ण और सुन्दर शब्द चित्र...

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  4. जितेन्द्र जी, मधुलिका जी, रश्मि जी व कैलाश जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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