दिल का द्वार रहे उढ़काए
नजर चुरायी जिस क्षण तुझसे
खुद से ही हम दूर हो गये,
तेरे दर पर झुके नहीं जो
दिल खुद से मजबूर हो गये !
स्वप्निल नैना बोझिल साँसें
दूर खड़ी ललचाती मंजिल,
कितने दांवपेंच खेले पर
सभी इरादे चूर हो गये !
राग जगाता जग भरमाता
हर सुकून सपना बन टूटा,
मनहर खेल रचाए जितने
आखिर सभी कुसूर हो गये !
हर उस क्षण तू वहीं रुका था
हाथ बढ़ाने से मिल सकता,
कैसी मदहोशी छायी थी
भूले से मगरूर हो गये !
सुने थे तेरे कई फसाने
है अनंत प्रेम का सागर,
दिल का द्वार रहे उढ़काए
इसमें ही मशहूर हो गये !
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