एक पुहुप सा खिला है कौन
एक निहार बूँद सी पल भर
किसने देह धरी,
एक लहर सागर में लेकर
किसका नाम चढ़ी !
बिखरी बूँद लहर डूब गयी
पल भर दर्श दिखा,
जैसे घने बादलों में इक
चपला दीप जला !
एक पुहुप सा खिला है कौन
जो चुपचाप झरे,
एक कूक कोकिल की गूँजे
इक निश्वास भरे !
एक राज जो खुला न अब तक
कितने वेद पढ़े,
किसी अनाम की खातिर कौन
पग-पग नमन करे !
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 101वीं जयंती : पंडित दीनदयाल उपाध्याय और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
जवाब देंहटाएंवाह ... अनाम वही है जो दिल में है ... सर्वस्व है पर दीखता नहीं ... जिसको नमन करने का मन करता है ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन शब्द संयोजन ......
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत भाव .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता.
जवाब देंहटाएंदिगम्बर जी,निवेदिता जी,मीना जी, ओंकार जी, व राजीव जी स्वागत व आभार !
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