गुरुवार, जून 25

पुकार

पुकार 

यूँ तो हजारों खड़े हैं कतारों में 
उसके द्वार वही जाता है 
जिसे वह बुलाता है !
लाख प्रमाण दिए प्रह्लाद ने 
नास्तिक पिता नकारे जाता है !
जल को अधरों से लगाते हम हैं 
पर अपनी प्यास तो वही जगाता है !
सुरीले गीतों को सुन झूम उठती है दुनिया 
गाते वही आ कण्ठ में जिनके सुर समाता है 
चढ़ते हैं दूर शिखरों पर आरोही वे ही 
पर्वत जिन्हें अपने पास बुलाता है !
हाँ, यह बात और है कि 
पर्वतों के आमन्त्रण को स्वीकार करे 
ऐसा जिगर कोई-कोई ही पाता है !
यानि मंजिल बुलाये तब भी 
कुछ कदम नहीं बढ़ते 
कोई उसकी पुकार पर दौड़ा चला जाता है !
एक लेन-देन अनोखा चल रहा 
झोली सिली है जिसकी 
वह मेहर को समेटे जाता है !

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