पुकार
यूँ तो हजारों खड़े हैं कतारों में
उसके द्वार वही जाता है
जिसे वह बुलाता है !
लाख प्रमाण दिए प्रह्लाद ने
नास्तिक पिता नकारे जाता है !
जल को अधरों से लगाते हम हैं
पर अपनी प्यास तो वही जगाता है !
सुरीले गीतों को सुन झूम उठती है दुनिया
गाते वही आ कण्ठ में जिनके सुर समाता है
चढ़ते हैं दूर शिखरों पर आरोही वे ही
पर्वत जिन्हें अपने पास बुलाता है !
हाँ, यह बात और है कि
पर्वतों के आमन्त्रण को स्वीकार करे
ऐसा जिगर कोई-कोई ही पाता है !
यानि मंजिल बुलाये तब भी
कुछ कदम नहीं बढ़ते
कोई उसकी पुकार पर दौड़ा चला जाता है !
एक लेन-देन अनोखा चल रहा
झोली सिली है जिसकी
वह मेहर को समेटे जाता है !
बहुत बहुत आभार मीना जी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएं🙏🙏 सुन्दर सन्देश
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