रविवार, जून 21

योग तभी घटता जीवन में


योग तभी घटता जीवन में 



टुकड़ा-टुकड़ा मन बिखरा जो 
जुड़ जाता जब हुआ समर्पित 
योग तभी घटता जीवन में 
सुख-दुःख दोनों होते अर्पित ! 

योगारुढ़ हो युद्ध करो तुम 
कहा कृष्ण ने था अर्जुन को, 
जीवन भी जब युद्ध बना हो 
योगी हर मानव क्यों ना हो ? 

योगी का मन एक शिला सा 
दुई में जीता है संसार, 
मंजिल एक, एक ही रस्ता 
लेकर जाए योग भव पार !

देह की हर वेदना जाने 
मन के स्पंदन को भी पढ़ता,
योगी कुशल कर्म में होकर 
हुआ साक्षी निज में रहता !

नित्य-अनित्य का संज्ञान है 
सुख के पीछे दुःख को लख ले, 
मैत्री, करुणा, मुदिता आदि  
अंतर के कण-कण में भर ले !




5 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-6-2020 ) को "अन्तर्राष्टीय योग दिवस और पितृदिवस को समर्पित " (चर्चा अंक-3741) पर भी होगी, आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

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  2. टुकड़ा-टुकड़ा मन बिखरा जो
    जुड़ जाता जब हुआ समर्पित
    योग तभी घटता जीवन में
    सुख-दुःख दोनों होते अर्पित !
    अहा अति सुंदर !!! योग और योग की परिभाषा को बखूबी लिखा आपने अनीता जी
    |योगी कुशल कर्म में होकर
    हुआ साक्षी निज में रहता !
    क्या खूब लिखा आपने | सादर

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  3. योग और आयुर्वेद हर मर्ज की दवा है

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