शुक्रवार, जून 19

सच की तलाश


सच की तलाश 

सच है खाली आकाश सा... 
शून्य !
तभी उसे भरा जा सकता है झूठ अथवा मिथ्या से 
जैसे नींद में जब सब खो जाता है मन से 
तो स्वप्न उसे भर देते हैं 
जो मिथ्या होते हुए भी 
देते हैं सच का आभास !

सच कोरे कागज सा है 
जिस पर शब्दों को अंकित करें तो 
पढ़ना होता है खाली जगह में 
दो शब्दों के मध्य सच को !

संगीत के स्वरों में जो अंतराल है 
जिसका कोई उत्तर नहीं 
सच ऐसा सवाल है !

 बिखरा है चहुँ ओर
पर उसे महसूस करना हो तो 
मिथ्या का साधन चाहिए 
जहाँ से तीर चलाती है माया 
उस इच्छा का कारण भी !

 दीवारें उठ गयी हों 
कितनी ही ऊँची 
सच को बाँध नहीं पातीं 
झांकता रहता है हर दरार से सच 
बस उस ओर नजर नहीं जाती ! 


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