हानि-लाभ
कदाचित हर इच्छा लोभ से उपजती है
हर भय हानि की आशंका से
सुख की आशा ही लोभ है
दुःख का दंश ही भय है !
कुछ और मिल जाये
कहीं कुछ खो न जाये
इन दो तटों के मध्य ही
बहती है जीवन सरिता !
योगक्षेम का ख्याल रखा जायेगा
कृष्ण का यह आश्वासन भी काम नहीं आता
वरना दुनिया में इतना संघर्ष बढ़ता नहीं जाता !
कुछ लोग उतरे हैं सड़कों पर कुछ पाने को
रत हैं कुछ दूसरों के भय को भुनाने को !
कोरोना की सुरसा सी बढ़ती भूख को
समझदारी ही शांत कर सकती है
जीवन यदि प्रिय है तो
परिवर्तन की धारा ही जिला सकती है
चिकित्सक भी उतना ही मानव है
जीवन दे नहीं दे सकता
अपने ही हाथों में है भविष्य
ऐसे मोड़ पर खड़ी है सभ्यता !
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंयोगदिवस और पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।
स्वागत व आभार !
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