मिलन अधूरा उसे न भाए
जन्मों की मृदु प्रीत पुरानी
कुछ भूली सी अनजानी कुछ,
उस प्रियतम को जरा पुकारो
दौड़ा आता हर पुकार पर !
निज सुख खातिर चाह उठी तो
मिलन नहीं वह केवल है भ्रम,
अहंकार उर शेष रहा तो
कहाँ रहे वैरागी प्रियतम !
उसे चाहता मन वैसे यदि
जैसे जग का हर सुख चाहे,
वह तो पूरा ही मिलता है
मिलन अधूरा उसे न भाए !
मन अंतर चरणों पर अर्पित
बुद्धि इसी पर होती गर्वित,
अहंकार भी चढ़ा प्रेम का
दूरी कभी न होती खंडित !
सब विस्मृत बस सुमिरन उसका
वही-वही बस रह जाए जब,
उससे पूरा मिलन घटेगा
है यही प्रीत का परम सबब !
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 01 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
हटाएंउस परम प्रियतम को पुकार कर ही परम शांति मिलती है जो इस जगत से नहीं मिलती । अति सुंदर ।
जवाब देंहटाएंसही कहा है आपने अमृता जी !
हटाएंसब विस्मृत बस सुमिरन उसका
जवाब देंहटाएंवही-वही बस रह जाए जब,
उससे पूरा मिलन घटेगा
है यही प्रीत का परम सबब ',,,,।।।बहुत सुंदर भक्ति मय रचना
स्वागत व आभार !
हटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 02-10-2020) को "पंथ होने दो अपरिचित" (चर्चा अंक-3842) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.
…
"मीना भारद्वाज"
बहुत बहुत आभार !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंजब तू है तब मैं नहीं ,जब मैं हूँ तू नाहिं ....
जवाब देंहटाएंप्रेम गली अति सांकरी जामे दो न समाहिं
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंआभार !
जवाब देंहटाएंआध्यात्म और दर्शन से भरी रचना ...वाह अनीता जी क्या खूब लिखा कि
जवाब देंहटाएंउसे चाहता मन वैसे यदि
जैसे जग का हर सुख चाहे,
वह तो पूरा ही मिलता है
मिलन अधूरा उसे न भाए !