रविवार, सितंबर 12

फिर सुनहली भोर आयी


फिर सुनहली भोर आयी


पंछियों  के स्वर अनोखे 

बोल जाने भरे कैसे, 

क्या सुनाते गा रहे हैं 

भोर होते गूंजते से !


तोड़ते निस्तब्धता जो 

यामिनी भर रही छायी,  

दे रहे संदेश मानो 

फिर सुनहली भोर आयी !


कूक कोकिल की सुरीली 

चेतना में प्राण भरती, 

उल्लसित उर सहज होता 

रात का ज्यों अलस हरती !


कंठ में सुर कौन भरता

वाग्देवी ! वाग्देवी ! 

कह रहे हर बोल में वे 

कर रहे ज्यों वंदना ही ! 


8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा 13.09.2021 को चर्चा मंच पर होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  2. बहुत प्यारी और मनमोहक रचना!

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 13 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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