शनिवार, दिसंबर 11

अपने दिल का द्वार खोल दें

अपने दिल का द्वार खोल दें


आज वक्त से वादा कर लें 

नव विश्वास आस नव भर लें, 

हर सिलवट को झाड़ मनों से 

जीवन पथ उजियाला कर लें !


चंद घड़ी जो पास हमारे 

तंद्रा-नींद  तमस न घेरे,  

पल-पल उसका सदा सँवारें 

अकर्मण्यता न डाले डेरे !


मन सपनों में ‘कोई’ जागा 

 टूटे नहीं कभी वह धागा, 

जिसमें कृष्ण पिरोए जग को 

तुलसी सहज विमल अनुरागा !


उसी एक का साथ मिले अब 

गरल भी अमृत बनकर छलके, 

खो जाए पीड़ा अभाव तब

पथ की हर बाधा वह हर ले !


द्वार खुला है निशदिन उसका 

अपने दिल का द्वार खोल दें, 

बरस रहा जो मधु फुहार  बन 

हटा आवरण उर में भर लें !




15 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(12-12-21) को अपने दिल के द्वार खोल दो"(चर्चा अंक4276)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  2. आस, विश्वास और कर्म सुंदर प्रेरक सृजन।
    साधुवाद।
    सस्नेह।

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  3. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 13 दिसम्बर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. खूबसूरत सकारात्मक पंक्तियाँ।

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  5. वाह बहुत ही उम्दा प्रस्तुति

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  6. कुसुम जी, संगीता जी, नीतीशजी, अनीता जी, मनीषा जी और ओंकार जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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  7. बहुत सुंदर मोहक पंक्तियां

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  8. बहुत सुन्दर ..
    मन के द्वार खुल जाए तो जीवन सफल है ...

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