अबकी बार नवरात्रों में
तंद्रा, प्रमाद सताते हैं
देह को अथवा मन को
आत्मा सदा ही सचेतन है !
पर जैसे काली हो जाये चिमनी
तो प्रकाश नहीं आता
प्रमादी हो जाये देह या मन तो
आनंद आत्मा का बाहर नहीं आता !
देह-दीपक जब साफ़ नहीं रहता
तो मन-स्नेह कैसे भरा जाएगा उसमें
देह दीपक में स्नेहिल मन हो
तभी न आत्मा की ज्योति जगमगायेगी
और देख वह जोत, अबकी बार
नवरात्रों में माँ हमारे घर आएगी
योग से देह-दीपक सजाना है
ध्यान से मन-स्नेह जलाना है
तब प्रकटेगी वह अखंड ज्योति
जो अभी सोयी है
अंधकार में भटक रोयी है !
नवरात्रों में माँ हमारे घर आएगी
जवाब देंहटाएंयोग से देह-दीपक सजाना है
ध्यान से मन-स्नेह जलाना है
तब प्रकटेगी वह अखंड ज्योति
जो अभी सोयी है
अंधकार में भटक रोयी है !
... बहुत सही ..... जय माता दी।
स्वागत व आभार कविता जी !!
हटाएंबहुत ही सुन्दर सार्थक रचना सखी
जवाब देंहटाएं"योग से देह दीपक सजाना है
ध्यान से मन स्नेह जगाना है "
संपूर्ण जीवन सार निहित है इन पंक्तियों में
स्वागत व आभार अभिलाषा जी !
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार जोशी जी !
हटाएंबहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी !
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