रामायण - मिथक से परे इतिहास की झलक
भाग - ५
कल रात हम जाफना पहुँचे थे।जाफ़ना श्रीलंका के उत्तरी सिरे पर एक समतल, शुष्क प्रायद्वीप पर स्थित है। यह देश के बाकी हिस्सों से सड़क और रेलमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। दक्षिण भारत के साथ इसका व्यापार होता है।
यूरोपीय लोगों द्वारा विजय प्राप्त करने से पहले सदियों तक जाफ़ना एक तमिल साम्राज्य की राजधानी थी, और इस शहर में आज भी कई विशिष्ट तमिल सांस्कृतिक विशेषताएँ मौजूद हैं। जाफ़ना नाम एक तमिल शब्द का पुर्तगाली रूपांतर है जिसका अर्थ है "वीणा का बंदरगाह"। डच काल का एक किला और एक चर्च यहाँ आज भी मौजूद है, और किले के पास एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर, कंडास्वामी कोविल है।
यहाँ का रेलवे स्टेशन ठीक हमारे होटल के सामने है। कल रात कमरे में सामान आदि व्यवस्थित करने के बाद कुछ देर के लिए टहलने गये। मुख्य इमारत के सामने कुछ खुला स्थान है, शायद पार्किंग के लिए। हम पहुँचे तो स्टेशन बंद हो चुका था।आज सुबह पुन: उसी स्थान पर प्रात: भ्रमण किया, एक महिला मिली जो अपना स्कूटर पार्क कर रही थी, उसे स्टेशन की कोई कर्मचारिणी समझ कर हमने बात आरम्भ की, तो पता चला वह लोकल ट्रेन से यात्रा करने आयी है।सुबह नाश्ते में तमिलनाडु दोसा खाया, जो बहुत ही पतला व कुरकुरा था।
साढ़े नौ बजे हम एक फेरी से नागमणि अथवा नागपूष्णी मंदिर (इंद्राक्षी देवी) देखने गये। जो नैनातिवू द्वीप पर स्थित अति विशाल, भव्य, ऐतिहासिक मंदिर है।नागपूष्णी अम्मन मंदिर जाफना से 36 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां माता सती की पायल गिरी थी। पार्वती को समर्पित चौसठ शक्तिपीठों से यह भी एक शक्ति पीठ है।यहाँ पार्वती को नागपूष्णी और भगवान शिव को रक्षेश्वर के रूप में पूजा जाता हैं। पार्वती देवी भुवनेश्वरी का सगुण रूप हैं।
इस मंदिर में चार भव्य गोपुरम हैं। हर वर्ष जून और जुलाई में यहाँ तिरुविल्ला महोत्सव मनाया जाता है।कहा जाता है कि लिंगम के साथ देवी नागपूष्णी की मूर्ति और राजा रावण की दस सिरों वाली मूर्ति इस मंदिर के अतिरिक्त कहीं नहीं हैं।मंदिर के कक्ष में दीवारों पर सुंदर चित्र बनाए गये हैं। एक चित्र में देवी की नाभि से ब्रह्म जी का जन्म दिखाया गया है।माधवानंद जी ने इस मंदिर के बारे में कई कथाएँ भी हमें सुनायीं। गौतम ऋषि और इंद्र की कथा, जिसमें अहल्या को छलने के बाद इंद्र को शाप मिलता है। वह इसी स्थान पर तपस्या के द्वारा पार्वती देवी को प्रसन्न करता है तो देवी उसके शरीर पर हज़ार नेत्र उगने का वरदान देती हैं। इसलिए देवी को यहाँ इन्द्राक्षी नाम मिला। एक अन्य कथा के अनुसार इसी स्थान पर नाग माता सुरसा ने विराट रूप बनाकर हनुमान जी को रोका था, वह सूक्ष्म रूप धर कर उनके मुख में प्रवेश करके बाहर निकल आये थे।नागदीप में विहारया नामक महत्वपूर्ण बौद्ध तीर्थस्थल भी है।
एक अन्य किंवदंती में कहा गया है कि एक नाग भुवनेश्वरी की पूजा के लिए अपने मुँह में कमल का फूल लेकर पास के तिवु द्वीप से नैनातिवु की ओर जा रहा था। एक गरुड़ ने नाग को देखा और उस पर हमला करके उसे मारने का प्रयास किया। चील के डर से, नाग ने नैनातिवु तट से लगभग आधा किलोमीटर दूर समुद्र में एक चट्टान के चारों ओर खुद को लपेट लिया। गरुड़ कुछ दूरी पर एक अन्य चट्टान पर खड़ा हो गया। चोल साम्राज्य के व्यापारी माणिकन, जो भुवनेश्वरी के भक्त थे, उन्होंने चील और सांप को चट्टानों पर बैठे देखा। उन्होंने चील से अनुरोध किया कि वह नाग को अपने रास्ते पर जाने दे। चील एक शर्त पर सहमत हुई कि व्यापारी को नैना तिवु द्वीप पर भुवनेश्वरी के लिए एक सुंदर मंदिर का निर्माण करना चाहिए और वह नागपूशनी अम्मन के रूप में उनकी पूजा का प्रचार करेगा। वह सहमत हो गया और तदनुसार एक सुंदर मंदिर बनाया। नागों के विरुद्ध अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए गरुड़ ने समुद्र में तीन बार डुबकी लगाई और इस प्रकार गरुड़ और नागों के बीच लंबे समय से चले आ रहे मनमुटाव समाप्त हो गए।
मंदिर से बाहर निकले तो हवा चल रही थी, फेरी तक जाने वाले मार्ग पर चलते समय हमने विशाल सागर में उठी लहरों की कई तस्वीरें खींचीं।एक व्यक्ति हारमोनिका पर कोई धुन बजा रहा था। कुछ कुत्ते, बकरियाँ और गायें भी वहाँ घूम रहे थे, जो भारत की याद दिला रहे थे। आते समय हम नाव में नीचे कक्ष में बैठे थे पर वापसी की यात्रा में डेक पर बैठकर हवा का आनंद लिया। दोपहर का भोजन होटल वापस आकर किया।
शाम को साढ़े चार बजे हम कंदास्वामी मंदिर देखने गये। आज वहाँ एक स्थानीय उत्सव मनाया जा रह था। हज़ारों की संख्या में लोग आये हुए थे। कई महिलाएँ छोटी-छोटी पुस्तिकाओं में स्कन्द षष्ठी पढ़ रही थीं। कुछ अन्य अग्नि में कुछ पका रही थीं। बच्चे रेत में घरौंदे बना रहे थे। मंदिर में शंख, घंटे और संगीत की ध्वनियाँ गूंज रही थीं। हमारा पूरा समूह भी उसी भीड़ में शामिल हो गया। स्वामी जी ने कई रोचक गाथाएँ सुनायीं और मूर्तियों का महत्व बताया, वापसी के समय एक महिला नहीं मिलीं, सभी जन कुछ देर के लिए परेशान हो गये, पर बाद में ज्ञात हुआ वह पहले ही भीड़ से बचकर बस के लिए चली गयीं थीं। इतनी भीड़-भाड़ में ऐसा होना स्वाभाविक ही था।
इसके बाद हम त्रेता युग में भगवान राम द्वारा वानरों की प्यास बुझाने के लिए बने कूप को देखने गये, जिसे अतल कुँआ कहते हैं। जिसमें उन्नीस किमी दूर किसी जल स्रोत से निरंतर जल आता है। रात्रि भोजन एक शाकाहारी भोजनालय में किया, जिसका नाम था ‘मैंगो इण्डियन वेजीटेरियन रेस्टोरें’ वहाँ मीठा आम भी खाया। पूरे श्रीलंका में हर कहीं आम के वृक्ष फलों से लदे हुए हैं। कोलंबो शब्द का अर्थ भी है, आम के वृक्षों वाला बंदरगाह !
सुंदर
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